दैनिक रेवांचल टाइम्स - जबलपुर में 20 से 22 अगस्त 2023 को "ठिठुरता हुआ गणतंत्र"विषय पर आयोजित अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ का 18 वां राष्ट्रीय अधिवेशन के अंतिम दिन में राज कुमार सिन्हा द्वारा चुटका परमाणु परियोजना को लेकर प्रस्ताव पढा गया।जिसे सभागार में उपस्थित लोगों ने सर्व सहमति से इस प्रस्ताव को पारित किया।नर्मदा घाटी में बने बरगी बांध के विस्थापित आदिवासी गांव में प्रस्तावित चुटका परमाणु बिजलीघर को तुरंत निरस्त करने की मांग करता है।
उल्लेखनीय है कि बांध में पहले ही 162 आदिवासी बाहुल्य गांव विस्थापित एवं प्रभावित किया जा चुका है।जिसमें 26797 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि डूब में आया है, जिसमें 8478 हेक्टेयर प्राकृतिक वनभूमि डूब में आया है।80 -90 के दशक में पुनर्वास नीति नहीं होने के कारण इन विस्थापितों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम ही नहीं बनाया गया।विस्थापित जलाशय के आसपास जंगलों में अपना बसाहट बनाया तो उसे भी वन विभाग ने तोड़कर फेंक दिया था।1990 से विस्थापितों ने संघर्ष शुरू किया तो कुछ बुनियादी व्यवस्था बना।आजीवका का संकट का समाधान नहीं हुआ है। बरगी बांध से 4.5 लाख हेक्टेयर में सिंचाई करने का लक्ष्य रखा गया था।परन्तु बांध में पानी भरने के 33 साल बाद भी मात्र 70 हजार हेक्टेयर में सिंचाई हो पा रहा है क्योंकि नहर ही नहीं बना है।विस्थापित परिवार अपने आपको व्यवस्थित करना शुरू ही किया था कि 2009 में चुटका परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित कर दिया गया।पांचवी अनुसूचि में शामिल दर्जनों गांव ने इस परियोजना के खिलाफ ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार को सूचित करने का कार्य किया।परन्तु केन्द्र और राज्य सरकार हठधर्मी रवैया अपनाते हुए परियोजना का पर्यावरणीय और प्रशासकीय एवं वित्तीय मंजूरी दे दिया है।परमाणु उर्जा संयत्र से निकलने वाला विकिरण के खतरे सर्वविदित हैं।वहीं परमाणु संयंत्र से निकलने वाली रेडियोधर्मी कचरा का निस्तारण करने की सुरक्षित विधी विज्ञान के पास भी नहीं है। चुटका संयत्र से बाहर निकलने वाली पानी का तापमान समुद्र के तापमान से लगभग 5 डिग्री अधिक होगा।जो नर्मदा में मौजूद जीव - जन्तुओं को खात्मा कर सकती है और जैव विविधता नुकसान पहुंचाएगी।नर्मदा घाटी के फॉल्ट जोन और इंडियन प्लेट्स के लगातार मूवमेंट के कारण दरार बढने से भूकंप के खतरे को बढा दिया है।इसके अलावा नर्मदा घाटी में बने बांधो के कारण दरारों में पानी भर रहा है।इससे चट्टानों का संतुलन प्रभावित होने की आशंका है।बीते तीन साल में नर्मदा और सोन नदी घाटी जिलों में धरती के नीचे 37 बार भूकंप आ चुका है।चुटका परमाणु संयंत्र के निर्माण में भी भारी तीव्रता का विस्फोट किया जाएगा।जिसके कारण भूगर्भीय हलचल होना संभावित है।भोपाल गैस त्रासदी के बाद हमलोग आदिवासी क्षेत्रों में दूसरा भोपाल नहीं होने देना चाहते हैं।
इसलिए हमारे राष्ट्रीय अधिवेशन में हम यह स्पष्ट मांग करते हैं कि उपरोक्त परियोजना को अविलंब निरस्त किया जाए और नर्मदा घाटी में बने सभी बांधों के विस्थापितों और प्रभावितों को समुचित पुनर्वास और न्याय उपलब्ध कराया जाए इस राष्ट्रीय अधिवेशन में 17 राज्यों के पांच सौ प्रतिनिधि शामिल थे।जिसमें साहित्यकार, लेखक, कवि चित्रकार, रंगकर्मी, बुद्धिजीवी और नागरिक समाज के प्रबुद्धजन जैसे पद्मश्री सईदा हमीद योजना आयोग की पूर्व सदस्य, राम पुनियानी, नवशरण कौर,वीरेन्द्र यादव, नरेश सक्सेना, राकेश, प्रसन्ना, प्रो सुखदेव सिंह सिरसा, प्रो अरजूमंद आरा, विभूति नारायण राय,राजेन्द्र तिवारी,कुंदन सिंह परिहार, कुमार अम्बुज, हिमांशु राय, तरूण गुहा नियोगी, बालेंदू परसाई, जगदीश जटिया(सेवा निवृत्त पूर्व कलेक्टर मंडला), गोपाल राठी सत्यम पाण्डेय, अवधेश बाजपेई, दिनेश चौधरी,आशीष पाठक,विनित तिवारी आदि उपस्थित थे।बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ और चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति ने राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा पारित प्रस्ताव का स्वागत किया है। दादु लाल कुङापे(9424305836)
चुटका परमाणु विरोधीसंघर्ष समिति
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