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Monday, April 3, 2023

आखिर कब तक नारियों का होता रहेगा शोषण!"



रेवांचल टाईम्स - देश के लगभग हर राज्य के किसी न किसी इलाके में देह व्यापार का धंधा अपने पैर पसारे हुए है, जहां लाखों महिलाएँ दुनिया से कटकर बेबस ज़िंदगी जी रही हैं। ऐसी बहुत ही कम महिलायें होती हैं जो अपनी मर्जी से देह व्यापार के धंधे में आती हैं। ज़्यादातर महिलायें ऐसी ही होती हैं जिनके सामने या तो कोई मज़बूरी होती है या अनजाने ही इन्हें इन बदनाम बाज़ारों में बेच दिया जाता है। भारत में वेश्‍यावृत्ति का चलन आज का नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है।

पूंजी के बाद स्त्री को समाज को संचालित करने वाली एक वस्तु माना गया है। जिस समाज की जितनी ज्यादा महिलायें वेश्यालयों में होंगी वह उतना कमजोर होता जाएगा। यही कारण था कि गुलाम व्यवस्था या कहें कि मुगलकाल में वेश्यालयों की संख्या बढ़ गई थी। हजारों की तादाद में महिलाओं को वेश्यालयों के हवाले कर दिया जाता था। गुलाम व्यवस्था में उनके मालिक वेश्याएं पालते थे। अनेक गुलाम मालिकों ने वेश्यालय भी खोले। मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। मुगलकाल के बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। भारत को पूरी तरह से खत्म करने के कई उपाय किए गए। भारत के कई गांव और समाज इस व्यापार में सैकड़ों सालों से लगे हुए हैं। अब यह उनका पुश्तैनी धंधा बन गया है। आधुनिक युग में देह व्यापार का तरीका और भी बदल गया है। पुराने वक्त के कोठों से निकलकर देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। यहां कॉलेज छात्राएं, मॉडल्स और टीवी व फिल्मों की नायिकाएं तक उपलब्ध कराने के दावे किए गए हैं। माना जाता है कि इस कारोबार में विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है। अब देह व्यापार आलीशान होटलों और बंगलों में चल रहा है। एक सर्वे के अनुसार कॉलेज और यूनिवर्सिटी की लड़कियों को इसमें आसानी से मनोवैज्ञानिक रूप से फंसाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों के कुछ क्षेत्रों में आज भी देह व्यापार भले ही एक छोटी आबादी के लिए रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है लेकिन पिछले कुछ महीनों में जिस देह व्यापार के हाईप्रोफाइल मामले सामने आए हैं उससे यह बात तो साफ हो गई है कि देह व्यापार अब केवल मजबूरी न होकर धनवान बनने का एक हाईप्रोफाइल धंधा बन गया है। नेता, अभिनेता और धर्माचार्य भी इस धंधे को चला रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर चल रहे इस उद्योग में रेस्तरां और मसाज पार्लर के अलावा डांस बार, छोटे होटल और लॉज भी शामिल हैं। यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। महिलाओं की तस्करी में भारत के कई गरीब क्षेत्रों की औरतों को इस धंधे में तेजी से और बड़ी संख्या में धकेला जा रहा है। देह के बढ़ते व्यापार के चलते अब मासूम लड़कियों को अगवा कर दूसरे देशों में बेच दिया जाता है। कई लड़के प्रेम के जाल में फंसाकर लड़कियों को देह व्यापार में धकेल देते हैं। इसके बदले उनको मोटी रकम मिल जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक‌, देह व्यापार से मुक्त कराई गईं 60 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्होंने नौकरी की तलाश में घर छोड़ा था लेकिन उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल दिया गया। 40 फीसदी ने बताया कि उन्हें शादी, प्यार और बेहतर जिंदगी का वादा करके या अपहरण करके इस धंधे में उतारा गया। विमुक्त जनजातीय समुदाय में शोषित वर्गों में एक बड़ा वर्ग महिलाओं का भी है। इस समाज की औरतें घर और बाहर दोनों जगह पर भागीदारी निभाती हैं। सरसरी तौर पर देखने में ऐसा लगता है कि इन समुदायों की औरतें निडर और उन्मुक्त हैं पर, वास्तविकता यह है कि वह 'घर' के बाहर हमें ‘उन्मुक्त’ ज़रूर दिखती हैं पर, घर के अंदर उसकी स्थिति बिल्कुल अलग होती है। परंपरा का उल्लंघन करने पर इनके लिए क्रूर और अमानवीय सजा का प्रावधान है। जैसे, जीभ को गर्म लोहे की छड़ी से दागना, आग पर चलाना, सिर के बाल उतरवा देना, उबलते तेल की कटोरी में से सिक्का निकालना इत्यादि। कुछ समुदाय की महिलाएं पारंपरिक पेशों के साथ-साथ सेक्स वर्क तक करने को मजबूर हैं। बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश में रहनेवाले बेड़िया-समुदाय की स्थिति कुछ और ही है। धीरे-धीरे इस समुदाय ने राई-नृत्य को अपना व्यवसाय बनाया। इस नृत्य को बेड़िया-समुदाय के स्त्री-पुरुष मिलकर किया करते थे। नृत्य की आड़ में इस समुदाय की महिलाओं को देह-व्यापार भी करना पड़ता था। धीरे-धीरे इस समुदाय के पुरुष अपनी घर की औरतों पर निर्भर होते चले गए और देह-व्यापार इन महिलाओं का मुख्य पेशा बन गया। घर चलाने की ज़िम्मेदारी घर की बेटियों की बन गई और बेटे शादी करके अपना घर बसाने लगे। जिन लड़कियों की शादी हो जाती वे‘बेड़नी’ अर्थात देह-व्यापार में नहीं जाती थी। उसे घर की चारदीवारी में ही रहकर घर संभालने ज़िम्मेदारी उठानी होती है। समाज में ये बुराई इतनी व्याप्त हो चुकी है कि कितने भी कायदे कानून बना ले लेकिन इनका फायदा नहीं क्युंकी देह व्यापार की जड़ इतनी मजबूत हो चुकी है अब कितना भी कोशिश कर के इसे खत्म नहीं कर सकते। या कानून की नीतियों को जाने अपनी शक्ति पहचाने या अब महिलायें विरोध करना सीखें या फिर कायदे कानून ऐसे हो कि जो ये कृत्य करे उसकी सजा भयानक हो। महिलाओं की दयनीय स्थिति को उबारने के लिए समाज के हर सदस्य को एकजुट होना चाहिए। चुप्पी तोड़ देना चाहिए हर महिलाओं को। मजबूरी में फंसी महिलाओं को इन्साफ आखिर कहाँ मिलेगा? समाज बदले तब औरतों की स्थिति भी बदले!

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