श्रीमती मनोरमा दीक्षित अब हमारे बीच नहीं है पर शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी विस्मृत नही किया जा सकता!!10 अगस्त 1940 को तुलसी जयंती के दिन जन्मी मनोरमा दीक्षित ने एक शिक्षिका के रूप में ठक्कर बापा वनवासी सेवा मंडल उ.मा.विद्यालय भुआ बिछिया में वर्ष 1962 से अपनी सेवाएं प्रारम्भ की जो अनवरत जारी रही व प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात भी शिक्षाजगत से जुड़ी रहीं!!उनकी साहित्यिक रुचि सर्वविदित थी,समसामयिक लेख,कविता,कहानियों का प्रकाशन देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में लगातार होता रहा!!उनके द्वारा लिखित 14 कृतियों का प्रकाशन हुआ जिनमें केशर की क्यारी(काव्य संग्रह),अनुभूति के स्वर,स्मृति के झरोखे,भारत दाई के अचरा मोर गाँव,पारिजात प्रसून,भीनी खुशबू,मेकलसुता मनोरम (परिक्रमा संस्मरण),कथा लोक,मृगजल,पलाश के फूल,तुलसी दलम,व कान्हा का राजा प्रमुख थीं जिन्हें साहित्य जगत में सराहा गया व श्रुतिपाठकों की प्रशंसा मिली!!सादा सरल जीवन जीने वाली श्रीमती मनोरमा दीक्षित सदैव अपने लोगों को श्रेष्ठ जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करती रहती थीं!!उनके द्वारा शिक्षित किये गए अनेक विद्यार्थी उच्चपदों पर शासकीय सेवारत,व्यवसायी व समाजसेवी हैं!!11 मार्च 2023 को दिवंगत हुईं श्रीमती मनोरमा दीक्षित हमारे बीच नहीं है किंतु उनके आदर्श उनकी जीवनशैली सभी के लिए प्रेरणास्रोत बनकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेगी!!ऐसी पुण्य आत्मा को सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि!!
रेवांचल परिवार की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏💐
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