रेवांचल टाईम्स - मंडला, जमात ए इस्लामी हिंद मंडला द्वारा साईं कृपा मंगल भवन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम जमात ए इस्लामी हिंद के 75 साल पूरे होने पर आयोजित गया। कार्यक्रम की शुरुआत हाफिज खुर्शीद अहमद ने तिलावत ए क़ुरआन से की। इसके बाद शयान खान ने नात पेश की। मोहम्मद सिकंदर ने कार्यक्रम के उद्देश्य की जानकारी दी। उन्होंने जमात ए इस्लामी हिंद के मूल उद्देश्य ईश्वर की प्रसन्नता एवं परलोक की सफलता पर अपने विचार रखते हुए। जमात ए इस्लामी हिंद मंडला इकाई के कार्यों की भी जानकारी दी।
इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जमात ए इस्लामी हिंद मध्यप्रदेश के सचिव इम्तियाज अहमद ने जमात-ए-इस्लामी - "जद्दोजहद के 75 साल" शीर्षक पर अपने विचार रखें। अपनी बात की शुरुआत में उन्होंने अल्लाह और रसूल सल्ल. की प्रशंसा व महिमा से अवगत कराया। इसके पश्चात ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजरें सानी की और यह फर्ज उम्मते मुस्लिमा को याद दिलाया कि आपकी हैसियत मानव समाज में क्या है ? और क्या होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि अल्लाह तआला ने इंसान को खलीफा (प्रतिनिधि) बनाया और अपनी सर्व श्रेष्ठ कृति होने की हैसियत से आगाह किया। फिर यह भी वाजह किया कि इस सृष्टि में मानव रचना की शुरुआत एक मानव को "सन्देष्टा" की पदवी देकर भेजा, ताकि मानव के क्रमिक विकास प्रक्रिया में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वरूप में सामंजस्य एवं शांति स्थापित हो। इसकी अंतिम कड़ी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस दुनिया में भेजा गया।
इम्तियाज अहमद ने जमात-ए-इस्लामी की स्थापना के बारे में बात करते हुए बताया कि इसकी स्थापना 1948 में हुई। इस्लाम के धर्मावलम्बियों का इस ओर आकर्षण एवं जिम्मेदारी का अहसास धीरे-धीरे बेदार हुआ। शैनः शैनः सैद्धांतिक विचारों के साथ व्यवहारों व्यावहारिक पहलुओं पर का कार्य हुआ, जिसमें इस्लामी साहित्य का लगभग भारत की 20 भाषाओं में अनुवाद, खिदमत ए खल्क (मानव कल्याण), स्वास्थ्य सेवा, माइक्रोफाइनेंस, प्राकृतिक आपदाओं में का कार्य, ब्याज रहित बैंकिंग सिस्टम आदि आदि शामिल है। अंततः मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के अंतिम सन्देष्टा की हैसियत से कयामत तक के लिए मोक्ष प्राप्त करने की जमानत करार पाए। उन्हीं के अनुसरण व अनुकरण के परिणाम स्वरूप मानव जाति का उद्धार व सफलता एवं अल्लाह की प्रसन्नता, परलोक की भलाई करार पाया।
ईश्वर के समीप मानव समाज को एक ईश्वर की तरह बुलाना, पुण्य का आवाहन करना, पाप से रोकना, व्यक्ति एवं सामूहिक जिम्मेदारी करार पाया। एक आदर्श समाज की स्थापना में नैतिक मूल्यों को परवान चढ़ाना, अनैतिकता को मिटाना और ईश्वर की भक्ति का प्रत्येक क्षेत्र में चहुमुखी विकास परलोक की अवधारणा के अंतर्गत व्यावहारिक जीवन को कर्तव्यों के बोध से सुसज्जित करना मूल देश बताया, अर्थात एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि "ईश्वर की प्रसन्नता और परलोक की सफलता"।
उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से कहा कि हमें सचेत होना चाहिए, यह संदेश जो ईश्वर का हमारे पास है लोगों तक आम करें ताकि न्याय के दिन की पूछ ताछ से बच सकें। यह इतनी बड़ी जिम्मेदारी हमारे सुपुर्द की गई है, हमें इसका एहसास होना चाहिए। हमें मतों - पंतों के मतभेदों से ऊपर उठकर दीन (धर्म) के बारे में सोचना होगा। महाप्रलय तक मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आखरी पैगम्बर (सन्देष्टा) के कोई नबी नहीं हैं। हम और आप इनके अनुयायी हैं। यह अब हमारी जिम्मेदारी है कि मानव जाति को इससे अवगत अवगत कराएं। यह काम व्यक्तिगत नहीं हो सकता, इसके लिए संगठित कोशिश कारगर होगी। इसी परिपेक्ष्य में आप ने मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक हदीस सुनाई "अर्थात हुक्म दिया, जमात कायम करों, उसकी सुनो, उसका अनुशरण व अनुकरण करो, पलायन और संघर्षरत"।
नागपुर के क्रेसेंट हॉस्पिटल & हार्ट सेंटर के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. काशिफ सैयद ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें दिन की बातों को आम करने के साथ - साथ स्वास्थ्य के बारे में भी जागरूक करने की जरूरत है। हमें लोगों को बताना चाहिए कि स्वस्थ रहने के लिए कैसी जीवन शैली होनी चाहिये, खाने में हमें क्या, कैसे और कितना खाना चाहिए। यदि हम अपनी जीवन शैली में कुछ बदलाव लाते है तो हम लम्बे समय तक सेहतमंद रह सकते है। आजकल काफी कम उम्र के लोग भी हार्ट अटैक व अन्य ह्रदय सम्बन्धी बीमारी का शिकार हो रहे है। इसलिए हमारी यह भी जिम्मेदारी है कि हम लोगों को स्वस्थ रहने के तरीके बताएं ताकि वे बीमार होने से बच सके।
कार्यक्रम का समापन दुआ से हुआ। सैयद कमर अली ने इज्तिमाई दुआ कराई। इस दौरान वक्ताओं के साथ - साथ हाजी कबीर व जमात ए इस्लामी हिन्द मण्डला के सदर मोहम्मद सलीम भी मंच पर मौजूद थे। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में हाफिज मोईन, हाफिज खुर्शीद, रहमत अली, परवेज अख्तर, जावेद अख्तर, मोहम्मद सलीम खान, मोहम्मद सिकंदर, शमीउर्रहमान का खास योगदान रहा।
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