रेवांचल टाईम्स - मंडला प्लास्टिक से बने चावल शासकीय उचित मूल्य दुकानों के माध्यम से हितग्राहियों को बांटे जाने की जनचर्चा बहुत समय से चलते आ रही है। जो घोर चिंता का रूप धारण करने लगा है। जिसकी असलियत से जनता को वाकिफ कराने की जिम्मेदारी अब शासन प्रशासन की है।इस चावल के उपयोग से बिगड़ते स्वास्थ्य के प्रति चिंतित जनता को संभावित रोगी बनाने से बचाया जाना जरूरी समझ में आ रहा है। जिस तरह कोविड के समय लोगों ने कोविड प्रभावित होकर कम कोविड के सदमे में आकर ज्यादा जानें गंवाई हैं।इसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए शासन-प्रशासन को प्रायोगिक जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। इस तरह भ्रम फैला रहे चावल के दानों के निर्माण की प्रक्रिया को जनता के सामने प्रयोग कर बताये जाने की सख्त आवश्यकता है। नहीं तो इसी तरह की शंकाओं का शिकार आम आदमी को होते रहना पड़ेगा।जीवन के लिए भोजन जैसे पदार्थ के प्रति मन बिगड़ने के कारण लोग तरह तरह की बीमारियों से ग्रसित होते रहेंगे।वैसे भी खाद्य पदार्थों में मिलावटी के बेरोकटोक गोरखधंधे का शिकार आम क्या खास आदमी भी होता आ रहा है।जिसका कोई समाधान भी नजर नहीं आ रहा है।इस तरह के शंका भरे चावल दानों का वितरण किये जाने के पीछे कारण यदि सरकार के अनुसार अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में कुपोषण की मौजूदगी है,तो इसको खत्म करने इस तरह के भ्रमयुक्त चावल के प्रयोग को रोककर महीनों से बंद गेहूं वितरण को चालू कर गेहूं की मात्रा बढ़ाकर भी दिया जाना बहुत आवश्यक होगा।जिससे भोजन में पौष्टिक तत्वों की बढ़ोतरी हो सके।
हितग्राही और समाज सेवी पी.डी.खैरवार ने इस संबंध में विज्ञप्ति जारी करते हुए जिला प्रशासन से ही नहीं राज्य और केंद्र दोनों सरकारों से मांग की है,कि शासकीय उचित मूल्य दुकानों से खाद्यान्न लेने वाले हितग्राहियों के बीच दिये जाने वाले चावल को लेकर चिंताजनक चर्चा हर चौक चौपालों पर जोरों पर चल रही है।इस तरह की जनचिंता को खत्म करने जागरूकता लाना समय की दृष्टि से बहुत ही आवश्यक है।जिसके लिए गहन जागरूकता अभियान की आवश्यकता है। जनता के बीच भारी चिंता के साथ चर्चा का भी विषय है,कि इस चावल को खाने पर खासकर पेट से संबंधित बीमारियां बढ़ सकती हैं।हाल ही में जिले के ग्राम पंचायत सुड़गांव, उमरिया,बोड़ासिल्ली सहित अनेकों जगह के राशन हितग्राहियों के घरों में इस तरह का चावल देखा गया है। खाद्यान्न में दिये जाने वाले चावल में धान से बने चावल से अलग लक्षण,आकार और प्रकार के दाने मिले हुए हैं। प्रथम दृष्ट्या सामान्य चावल से इनका रंग भी अलग हटकर है। धान से निकले चावल के दानों का रंग एकदम सफेद होता है,तो यह मिलाये गये दानें का रंग भूरा मटमैला है।नाखूनों की मदद से तोड़ने की कोशिश किये जाने पर भी आसानी से टूटने की बजाए दानें टूटते नहीं,पानी में भिंगोकर छूने पर चिकनाहट के कारण दाने अंगुलियों से पकड़ में आने की बजाए फिसल जाते हैं,गीले दानें को कागज पर रखकर सुखाने पर दाने कागज पर चिपक जाते हैं।अंगार में डालने पर जलने की बजाए दाने पिघलते से हैं। कच्चे दानें को दांतों से चबाने पर चबकर घुलने की बजाए दांतों में चिपक जाते हैं। उबाले जाने पर चावल के साथ मिलकर पता नहीं चल पाता। प्लास्टिक की तरह इस तरह से लक्षण होने के कारण कम जानकार भोली भाली क्षेत्र की जनता भारी भ्रमित चल रही है।जिसके लिए शासन प्रशासन से मांग की जाती है,कि समय के रहते बनावटी चावल की असलियत बताने प्रायोगिक जन जागरूकता चलाई जाए। जिससे शंकाग्रस्त जनता संतुष्ट होकर लोकतंत्र के प्रति विश्वास भी बनाये रखे।
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