रेवांचल टाईम्स - आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला जिले में भरपूर जंगल है और इन्हें सुरक्षित के लिए अमला जगह जगह तैनात है पर अपने निजी स्वार्थ के चलते वनों की लकड़ी को बेखौफ ईट के भट्टो में लग रही है और वन अमला चैन की नींद सो रहा है या फिर देखना नही चाह रहा है ये वह स्वयं ही बता पाऐगे क्योंकि जब वन विभाग के कार्यालय से महज 200 मीटर के दूरी में ही 10 से 12 भट्टे लग रहे है और वन अमला के जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी को नही पता है वही ईट भट्ठे के मालिक जंगल की लकड़ी अपने लोंगो से जंगल कटवा कटवा कर ईंट के भट्टो में झोंक रहा है पर वन अमला को देखने तक कि फुर्सत नही है
वही जिले में संचालित ईंट भट्टो के लिए कोई नियम कानून तय नही है जिसको जहाँ मन हो रहा वहाँ पर खोद रहा है जहां मन लग रहा है वहाँ भट्टा लगा रहा हैं नियम को ताक पर रखकर संचालित हो रहे ईंट के भट्ठे-वन विभाग की मौन सहमति से हो रहा वन संपदा का बेतरतीब दोहन
इन दिनों मंडला जिले के दूरस्थ इलाके में जमकर वनों को उजाड़ बनाया जा रहा है । जिस तरफ भी देखिए जंगल अब वीरान हो रहे हैं ।वनों की अंधाधुंध कटाई से अब वनांचल कहलाने वाला यह क्षेत्र वीरान क्षेत्र बनता जा रहा है | यही हालात रहे तो कुछ सालों में वन्यजीवों को छुपने के लिए भी जगह ना मिलने से उनके अस्तित्व का संकट उत्पन्न होने में कोई संदेह नहीं ।
वन परीक्षेत्र मवई से लगे मवई ' 'रमतिला ' धनगांव 'पुन गांव 'बहेरा टोला ' खुर्सीपार ' हर्रा टोला ' पखबार 'अमवार कनई टोला 'मोहगांव 'बिलगांव ' अतरिया ' रमपुरी ' बसनी ' सठिया 'सहित लगभग 20 - 30 गांव और टोलों में ईटें बन रही हैं ।वही पीएम आवास के लिए तो ग्रामीण क्षेत्र के सभी हितग्राही स्वयं ईट बनाकर अपने आवास को पूर्ण कर रहे हैं | वन परीक्षेत्र कार्यालय मवई से भट्टे लगभग 300 से 700 मीटर की दूरी तक लगभग 10 भट्टे चल रहे हैं ।आखिर सवाल उठता है कि इन भट्ठों के लिए लकड़ियां कहां से आती है ?वन विभाग के लकड़ी डिपो पर कोई भी लकड़ी दिखाई नहीं पड़ती |सुलगने वाले यह ईट के भट्टे आखिर कहां की लकड़ी से सुलग रहे हैं ?मजाल है आखिर इस तरफ वन विभाग की नजर भी पड़ जाए ।जिनके कंधों पर वन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वही जिम्मेदार इन सबसे बेखबर हैं | जब वन विभाग के जिम्मेदार ही इन सब की सुरक्षा व्यवस्था करने में नाकाम सिद्ध हो रहे हैं तो फिर यह जिम्मेदार किस की सुरक्षा करेंगे |
वही वन विभाग के द्वारा ईंट भट्टों के संचालक को दिया जा रहा अभय दान अवैध तरीके से चल रहे इन धंधों में अपने अपने रसूख के दम पर वन विभाग अमले को मेंटेन किया जा रहा है। जिम्मेदार भी अभय दान देकर मोटी रकम से अपनी जेब भर रहे हैं । मुख्यालय मवई भी इन्हीं बेपरवाह कर्तव्य विहीन अधिकारियों कर्मचारियों के लिए सर्व सुविधा युक्त आश्रय स्थल है, तभी तो ऐसे लोग एक बार यहां आने के पश्चात जाने का नाम भी नहीं लेते |
इनका कहना है
मुझे आपके माध्यम से जानकारी लगी है में कल ही डिप्टी रेंजर को भेज कर दिखावा हूँ और कार्यवाही करता हूँ भट्टों में गीली लकड़ी उपयोग नही कर सकते है और ऐसा कर रहे है तो गलत है।
ए के पाठक
रेंजर मवई
हम तो सालों से भट्टा लगा रहे है और जंगल से सूखी लकड़ी लोगो से खरीद कर भट्टा लगा रहे है और जंगल विभाग से अधिकारी आते है देख कर अपना ख़र्चा पानी लेकर चले जाते है और 100/ 200 की रसीद काट देते है और हम तो विभाग से चिट्टे की लकड़ी का ज्यादातर खरीद कर उपयोग करते है।
मुकेश चक्रवर्ती मवई
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