मंडला 15 जनवरी 2023
उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने जिले के समस्त
कृषकों के लिए रबी सीजन हेतु विभिन्न फसलों की कृषि एडवाईजरी जारी की है।
गेहूं
द्वितीय सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय करें। समय से बोई गई फसल में तृतीय सिंचाई बुवाई के
60-65 दिन बाद तने में गाँठे बनते समय करें। गेहूं में यूरिया का
उपयोग सिंचाई उपरान्त ही करें जिससे कि नत्रजन का समुचित उपयोग हो सके। यूरिया का
छिड़काव (टॉप ड्रेसिंग) सुबह या रात में न करें क्योंकि उसे की बूँदों के सम्पर्क
में यूरिया आने से पौधे की पत्तियों को जला देती है। दिन के समय यूरिया का छिड़काव
करें।
चना
चने के खेत में कीट नियंत्रण हेतु टी आकार की खूंटियाँ (35-40, हे.) लगाएं। फली मैदाना भरते समय खूटियाँ निकाल लें। चने की
फसल में चने की इल्ली का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर (1-2 लार्वा, मी. पंक्ति) से अधिक होने पर इसके नियंत्रण हेतु कीटनाशी
दवा फ्लूबेन्डामाइड 39.35 प्रतिशत एस.सी. की 100 मिली, हे. या इन्डोक्साकार्ब 15.8 प्रतिशत ई.सी. की 333 मिली., हे. का 400-500 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
मटर
मटर की फसल की पत्तियों पर धब्बे दिखाई दें तो मेन्काजेब 75 प्रति डब्ल्यू पी फफूंदनाशी के मिश्रण का 2 ग्रा.या कार्बेन्डाजिम 12 प्रति $ मेन्काजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू. पी फफूँदनाशी के मिश्रण का 2 ग्रा., ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। मटर की फसल में
चुर्णिल फफूंदी (पाउडरी मिल्ड्यू) रोग के लक्षण जैसे पत्तियों, फलियों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई दें, तो इसके नियंत्रण के लिये फसल पर कैराथेन फफूँदनाशी का 1 मि.ली., ली. या सल्फेक्स 3 ग्रा., ली. पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
मसूर
फसल पर एन.पी.के. (19:19:19) पानी में घुलनशील उर्वरक को फूल आने से पहले और फली बनने की अवस्था पर 5 ग्रा., ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे कि उपज में
वृद्धि हो सकें। फसल पर माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डायमिथोएट 30 ई.सी. 2 मि.ली., ली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.2 मि.ली., ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
गन्ना
शीतकालीन गन्ने की फसल में गुडाई करें। खेत में नमी की कमी
होने पर सिंचाई कर सकते हैं।
सरसों
सरसों में सिंचाई जल की उपलब्धता के आधार पर करें। यदि एक
सिंचाई उपलब्ध हो तो 50-60 दिनों की अवस्था पर करें। दो
सिंचाई उपलब्ध होने की अवस्था में पहली सिंचाई बुवाई के 40-50 दिनों बाद एवं दूसरी 90-100 दिनों बाद
करें। यदि तीन सिंचाई उपलब्ध है तो पहली 30-35 दिन पर व अन्य दो 30-35 दिनों के अंतराल पर करें।
बुवाई के लगभग 2 माह बाद जब फलियों में दाने भरने लगे उस समय दूसरी सिंचाई
करें। तापमान में तीव्र गिरावट के कारण पाले की भी आशंका रहती है। इससे फसल बढ़वार
और फली विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे बचने के लिए सल्फर युक्त रसायनों
का प्रयोग लाभकारी होता है। डाई मिथाइल सल्फो ऑक्साइड का 0.2 प्रतिशत अथवा 0.1 प्रतिशत थायो यूरिया का छिड़काव
लाभप्रद होता है। थायोयूरिया 500 ग्राम 500 लीटर पानी में भारत बनाकर मूल फलियां बनने के समय प्रयोग करें। इससे फसल का
पाने से भी फसल पर माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डायमिथोएट 30 ई.सी. 2 मि.ली., ली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.2 मि.मी., ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सामान्य
सिंचाई हेतु स्प्रिंकलर, रेन गन, ट्रिप इत्यादि का उपयोग करें जिससे सिंचाई के उस का समुचित
उपयोग हो सके। रबी दलहन में हल्की सिंचाई (4-5 से.मी.) करनी चाहिए क्योंकि अधिक पानी देने से अनावश्यक वानस्पतिक वृद्धि
होती है एवं दाने की उपज में कमी आ जाती है। रबी फसलों की पत्तियों पर धब्बे दिखाई
दें तो मेन्काजेब 2 ग्राम या कार्वेन्डाजिम + मेन्काजेब (साफ) 2 ग्रा., ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। जब भी पाला पड़ने की आशंका हो या मौसम
विभाग द्वारा पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए
अथवा खेत की मेड़ों पर धुआँ करें।
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