दैनिक रेवांचल टाइम्स - मंडला केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बेबसाइट से ज्ञात हुआ है कि नदी घाटी प्रोजेक्टस के लिए मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ मुल्यांकन समिति की बैठक 25 जनवरी 2023 को प्रस्तावित है।इस बैठक में देश की अन्य नदी घाटी परियजनाओ के साथ नर्मदा घाटी की प्रस्तावित बसनिया बांध पर भी चर्चा होगी।बैठक में परियोजना निर्माता द्वारा किये गए आवेदन पर विशेषज्ञ मुल्यांकन समिति द्वारा पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन के लिए छानबीन के बिन्दू या शर्ते दी जाएगी। जिसे टर्म ऑफ रेफरेंस (टी.ओ.आर) देना कहा जाता है।इस टी. ओ.आर की शर्तो के अनुरूप परियोजनाकर्ता पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन रिपोर्ट तैयार करेगा।इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जनसुनवाई प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
ज्ञात हो कि भारत में पर्यावरण प्रभाव आंकलन की आवश्यकता सर्वप्रथम 1976 -77 में तब महसूस की गई जब योजना आयोग ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग को नदी घाटी परियोजनाओ को पर्यावरणीय दृष्टी से जांच करने को कहा। पर्यावरण कानून 1986 के प्रावधानों के अन्तर्गत 1994 और 2006 में पर्यावरण प्रभाव निर्धारण नोटीफिकेशन के जरिए 32 औधौगिक एवं विकासात्मक परियोजना शुरू करने के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया गया है। बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी संघर्ष समिति के तितरा मरावी,नवल सिंह मरावी,बजारी लाल सर्वटे, राजेन्द्र कुलस्ते और शिवरतिया बाई आर्मो ने मंडला के बुद्धिजीवी, समाजसेवी और जनप्रतिनिधियों से अपील किया है कि डाक्टर गोपा कुमार अध्यक्ष विशेषज्ञ मुल्यांकन समिति और योगेन्द्र पाल सिंह समिति के सदस्य सचिव को बसनिया बांध के लिए टर्म ऑफ रेफरेंस नहीं देने हेतू पत्र लिखने का कष्ट करें।क्योंकि परियोजनाकर्ता आजतक प्रभावित ग्राम सभा से किसी तरह की अनुमति नहीं मांगा है।परन्तु भोपाल और दिल्ली से अनुमति मांगा जा रहा है। यह सत्ता के केंद्रीकरण का एक उदाहरण है जो पेसा अधिनियम के मंशा के विपरीत है।
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