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Sunday, October 9, 2022

शरद पूर्णिमा का व्रत कर रहे हैं तो इस कथा को पढ़ना ना भूलें, मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न



आज यानि 9 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है और कई जगह इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना है. हिंदू धर्म में वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा तिथि बेहद महत्वपूर्ण होती है लेकिन शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2022 Date) का विशेष महत्व है. कहते हैं कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और इस​ दिन चंद्रमा की रोशनी कई रोगों से मुक्ति दिलाती है. अन्य पूर्णिमा की तरह ही शरद पूर्णिमा के दिन भी व्रत-उपवास किया जाता है और व्रत के दौरान कथा पढ़ना महत्वपूर्ण होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्रत बिना कथा के अधूरा होता है. यहां पढ़ें शरद पूर्णिमा व्रत कथा…
शरद पूर्णिमा व्रत कथा

एक नगर में एक साहुकार रहता था. उसकी दो पुत्रियां थीं. साहुकार की दोनों पुत्रियों का धर्म-कर्म में ध्यान रहता और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. बड़ी बेटी हमेशा अपना व्रत पूरा करती और लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा ही करती थी. कुछ समय के बाद दोनों की शादी हो गई.

बड़ी बेटी ने स्वस्थ संतानों को जन्म दिया, लेकिन छोटी बेटी की संताने पैदा होने के उपरांत मर जाती थीं. संतानों के मृत होने से दुखी साहुकार की छोटी बेटी पंडित के पास पहुंची. पंडित ने कहा कि तुमने पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा किया. इसलिए तुम्हारी संताने जन्म लेते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती हैं.

उसने ऐसा ही किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया.

बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा. यह देखकर बड़ी बहन हैरान हो गई और कहा कि तुमने अपने पुत्र को यहां क्यों सुला दिया. अगर वह मर जाता तो मुझ पर कलंक लग जाता. क्या तुम ऐसा चाहती थी. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इसके बाद दोनों बहनों ने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और सभी नगर वासियों को शरद पूर्णिमा व्रत की महिमा और पूरी विधि बताई.

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