रेवांचल टाईम्स - आदिवासी अँचलों में दीपावली के त्यौहार आने के पहले से ही जुआड़ियों और शराबियों में खुशी की लहर देखी जा सकती हैं और ये खुशी त्यौहार के बहाने पहले से लेकर 15 दिन तक रात से सुबह तक चलती है। दीपावली का त्यौहार में सदियों से चली आ रही परम्परा को निभाते चले आ रहे है वही परंपरा आज भी जारी है जुआ खेलना शुभ माना जाता है पर आज जुआ एक ऐसा नशा हो गया है कि लोग सुबह से शाम तक घरों से लेकर जंगल में अपना ठीहा बना बैठे है से कुछ एक ओर जहां आम जन मानस दीपावली की खुशियां अपने स्नेहजनों से मिलकर व नाच-गाकर बम, पटाखे फोडकर मना रहा था वहीं समाज का एक ओर ऐसा वर्ग जो हर त्यौहार में पीने के बहाने ढंूढता है उसनें जमकर मौज मनाई । बताया जाता है कि रातभर नगर में शराबखोरी का दौर होटल ढाबों और खुलेआम रास्तांे पर चलते रहा जिस पर किसी भी प्रकार का अंकुश नही था वहीं दीपोत्सव से जुडी एक कुरीति जुंआ खेलने की भी है इस दिन हर व्यक्ति अपने हाथ आजमाना चाहता है और यह देखता है कि मॉं लक्ष्मी उससे प्रसन्न है कि नहीं । इसी कुरीति को आगे बढाते हुए कई जगहों जुंए के फड बैठे पाए गये जिनमें से कुछ पुलिस की पकड मंे आए तो कुछ बच निकले । जो भी हो नगर में जमकर इस प्रकार की कुरीति का दौर पहली ही बार देखा गया जबकि पूर्व की तुलना में दीपावली में जिस प्रकार अप्रत्याशित घटनाएं सुनाई देती थी इस वर्ष शांति रही और कोई भी घटना दुर्घटना गंभीर नहीं सुनाई दी।
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