चैतन्य भट्ट
अभी तक तो चुनाव में हिंदू माइथॉलजी का ही उपयोग हो रहा था, कोई किसी को रावण कह रहा था तो किसी नेता को राम बताया जा रहा था कोई कृष्ण का रूप धारण किएथा तो कोई अर्जुन बनकर तीर छोड़ रहा था लेकिन अब लगता है ये तमाम पात्र कम पड़ने लगे हैं इसलिए नेता लोग फिल्मों की तरफ दौड़ पड़े हैं, वैसे नेताओं और फिल्मों का बहुत पुराना नाता रहा है मसलन एन टी रामाराव जय ललिता, रजनीकांत, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, राज बब्बर, हेमामालिनी, विनोद खन्ना, जया भादुड़ी, सब फिल्मों से ही राजनीति में आए लेकिन इनमें और वर्तमान राजनेताओं में थोड़ा फर्क है पुराने अभिनेता निर्देशक के कहने पर एक्टिंग करते थे लेकिन आजकल के नेता खुद ही एक्टर खुद ही प्रोड्यूसर और खुद ही डायरेक्टर हैं । कहां कैसी एक्टिंग करना है ये उन्हें बहुत अच्छी तरह से मालूम है वे नाच भी लेते हैं, गाना भी गा लेते हैं भजन भी सुना देते हैं आंसू भी बहा लेते हैं तो दहाड़ भी लेते हैं अपने विरोधियों को पटखनी देने के लिए भी तरह-तरह के टोटके भी अपनाते हैं यानी अभिनय के जितने प्रकार हो सकते हैं वे तमाम प्रकार उनके दिमाग में बने रहते हैं ,जहां-जैसा मौका मिलता है वैसा अभिनव कर लेते हैं। अपना तो मानना है कि अभिनय के लिए जो जो पुरस्कार बनाए गए हैं चाहे वो "दादा साहब फाल्के" पुरस्कार हो "फिल्म फेयर पुरस्कार" हो "स्क्रीन अवार्ड" हो ये तमाम पुरस्कार इन नेताओं को परमानेंटली दे देना चाहिए कि भैया आप लोगों के अभिनय के सामने ये बॉलीवुड के तमाम एक्टर पानी भरते हैं । हां तो बात हो रही थी चुनाव के दौरान जय वीरू और गब्बर की, उसके बाद मेरे अपने के श्याम और छेनू ने भी एंट्री मार दी , लेकिन अभी ऐसे बहुत से पात्र हैं जिनके बारे में जनता को ये राजनेता बतला नहीं पाए हैं,जनता भारी परेशान है और उसको उत्कंठा भी है कि राजनीति के इस अखाड़े में जय वीरू गब्बर, छेनू श्याम तो आ गए हैं लेकिन बसंती कौन है, धन्नो कौन है, मौसी कौन है, ठाकुर कौन है, और तो और रामू काका कौन है इसका पता अभी तक नहीं चल पा रहा है,खुफिया सूत्र बताते हैं कि दोनों राजनीतिक पार्टियां इस सोच विचार में है कि इनमें से किसको किस में फिट किया जाए, हो सकता बहुत जल्द इन तमाम पात्रों को भी राजनेताअपने अपने हिसाब से किसी न किसी पर फिट कर दें ,वैसे अभी और भी बहुत सी जोड़ियां है जिन पर नेताओं की नजर नहीं गई है अभी "करण अर्जुन" हैं," राम लखन" हैं, मुन्ना भाई एमबीबीएस के "मुन्ना और सर्किट" है तो याराना फिल्म के "किशन और विशन " हैं और बहुत पीछे चले तो राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म दोस्ती के "मोहन और सोहन "भी है यानी अभी बहुत सी जोडियों का नामकरण संस्कार होना बाकी है अपने को इंतजार है कि चुनाव की तारीख से पहले इन सब का पता आम जनता को लग जाए तो बेहतर होगा ।
असली जादूगर तो ये हैं
पिछले दिनों "जादू डे" मनाया गया वैसे तो आजकल तरह-तरह के डे मनाये जाते हैं अभी अपने शहर जबलपुर के एसपी साहब का एक फरमान आया है कि हर मंडे को "हेलमेट डे" रहेगा यानी अगर अपने मंडे को हेलमेट धारण नहीं किया तो आपका चालान तय है बाकी के दिनों में आप बिना हेलमेट के घूमो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। ऐसा ही जादू डे मनाया गया जिसमें कुछ जादूगरों से उनके जादू के बारे में बात की गई लेकिन अपना मानना ये है कि सबसे बड़े जादूगर नेता होते हैं। जादूगर स्टेज पर लड़की गायब कर देता है लेकिन ये नेता तो चुनाव जीतने के बाद ऐसे गायब होते हैं कि फिर जनता को दिखाई ही नहीं देते, जैसे जादूगर रुमाल में से कबूतर निकाल देता है उससे बढ़कर राजनेता अपनी चुटकी से तमाम तरह के वादे और घोषणाएं आए जनता के सामने रख देता हैं। वशीकरण और हिप्नोटिज्म में ये नेता सिद्धहस्त होते हैं कैसे जनता को अपने वश में किया उन्हें मालूम होता है, लाख जनता उनसे नाराज हो लेकिन जब सामने आते हैं तो ऐसा कुछ कर देते हैं कि जनता उन्हें न केवल माला पहना देती है बल्कि उनके नाम का बटन भी दबा कर आ जाती है, ये बात अलग है कि उसके हाथ में बाद में पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता । जादूगरों को तो इन तमाम नेताओं से वो सारे जादू सीख लेने चाहिए जो उन्हें अभी तक नहीं आते हैं क्योंकि इनसे बड़ा जादूगर आज तक ना कोई हुआ हैऔर ना ही भविष्य में होगा ये बात तो हंड्रेड परसेंट सच है।
कैसा महसूस होता होगा
कैसा महसूस होता होगा उन तमाम टिकट के उम्मीदवारों को जो टिकट के लिए अपनी जान लड़ाए पड़े थे, लेकिन टिकट किसी दूसरे के हाथ में चली गई। कैसे-कैसे सपने देखे थे उन लोगों ने कि वे अपने साथियों के साथ जाकर जनता से अपने लिए वोट मांगेंगे, कोई उन्हें माला पहनाएगा तो कोई उन्हें घर के भीतर बिठाकर चाय पिलायेगा उनके चेले उनकी जय जयकार करते हुए जनसंपर्क करवाएंगे लेकिन वे सारे सपने टूट गए और अब उन्हें पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के साथ जाकर उसके लिए वोट मांगना पड़ा रहा है। मन में कितना दुख भरा रहता होगा कि जिस जगह हमें होना था हमारा प्रतिद्वंदी खड़ा है जहां हमें अपने लिए वोट मांगने थे इसके लिए वोट मांगना पड़ रहा है ये तो वही बात हुई कि शादी की बात किसी से चल रही थी और दूल्हा कोई और बन गया, लेकिन क्या करें मजबूरी तो है ऊपर वालों ने बत्ती दे दी है कि अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ जरा भी भीतर घात की कोशिश की तो हमारे करमचंद जासूस जो हर तरफ फैले हुए हैं एक-एक चीज की खबर हम तक पंहुचा रहे हैं जिसने भी थोड़ी बहुत चीटिंग की उसकी लाई लुटने में ज्यादा देर नहीं लगेगी, अपना तो इन तमाम दुखियों से एक ही कहना है
" राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है दुख तो अपना साथी है"
सुपरहिट ऑफ़ द वीक
"देखो देखो मैच स्टार्ट हो गया है ये सीरियल वाला चैनल बंद करो और मैच वाला लगाओ" श्रीमान जी ने श्रीमती जी से कहा
"नहीं मैं तो यही देखूंगी "श्रीमती जी ने उत्तर दिया
"मैं भी देखता हूं" श्रीमान जी ने गुस्से में कहा
" क्या देखते हो" श्रीमती जी ने पूछा
"वो ही चैनल जो तुम देख रही हो" श्रीमान जी ने धीरे से उत्तर दिया
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