सूर्य षष्ठी यानी छठ पूजा का पर्व केवल पुत्र प्राप्ति की मनोकामना, पुत्र और पति के दीर्घायु तथा निरोगी होने के साथ ही पर्यावरण संतुलन और सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ा हुआ है. नदी में उतर कर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य तथा भोग में तत्कालीन वनस्पतियों और स्वास्थ्य वर्धक पकवानों का भोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का भी संदेश देता है.
छठ पूजा है प्रकृति को बनाए रखने का पर्व
वास्तव में भारतीय दर्शन में प्रकृति के विविध साधनों के प्रति सनातन से आदर व्यक्त करने का भाव रहा है. हिंदू धर्म के विभिन्न तीज त्योहारों में सूर्य, चंद्र, वृक्ष, नदी, वायु, अग्नि आदि को पूजने का अर्थ ही उनके प्रति आदर और कृतज्ञता व्यक्त करना है. दुनिया चाहे जितनी भी आधुनिकता में आगे चली जाए और तकनीक के लिहाज से चाहे कितने भी अविष्कार हो जाएं किंतु यह प्राकृतिक प्रतीक हमारे मन व जीवन में सदैव बने रहेंगे. यह प्रतीक हमें इनका सम्मान करने और दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करने और सदैव आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करते हैं. मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने जीवन को वैसा ही बनाने का प्रयत्न करता है जैसा स्वाभाविक होता है.
छठ पूजा है पर्यावरण संतुलन का पर्व
छठ पूजा में वर्तमान मौसम में मिलने वाले सभी फलों को छठ देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. ऐसा करते हुए पर्यावरण को बचाने वाले वृक्षों व वनस्पतियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है. नदी में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ्य देने का तात्पर्य यह भी है कि नदियों, नहरों और तालाबों के जल को पवित्र रखें तभी तो वहां का जल स्नान करने व अर्घ्य देने लायक रहेगा. प्रदूषित जल का उपयोग जब निजी जीवन में नहीं किया जाता है तो किसी देवता की पूजा में उसका कैसे इस्तेमाल किया जाए. इस तरह यह पर्व हमें नदियों के संरक्षण के साथ ही उसके जल की निर्मलता और अविरलता को बनाए रखने का भी संदेश देता है.
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