अगले पचास साल में नर्मदा के विलुप्त होने का खतरा - revanchal times new

revanchal times new

निष्पक्ष एवं सत्य का प्रवर्तक

Breaking

Thursday, June 8, 2023

अगले पचास साल में नर्मदा के विलुप्त होने का खतरा






दैनिक रेवांचल टाइम्स - मंडला नर्मदा घाटी : आज और कल की चुनौतियां पर नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा बङवानी में कल दिनांक 7 जून को कार्यक्रम आयोजित था।जिसमें प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुभाष पांडे,सुप्रसिद्ध खेती  विशेषज्ञ अरूण डीके,वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक रामस्वरूप मंत्री,नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा और भोपाल के पार्षद मोहम्मद शाउफ एवं पत्रकारअशरफ शामिल थे। कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी दुनिया की सबसे पुरानी घाटी है,जहां आदिमानव और एशिया खंड के पहले किसान का भी जन्म हुआ था।यह पुरातत्व शास्त्री के शोध में निकलकर आया है।नर्मदा पर  निर्मित सिंचाई और बिजली परियोजनाओ के लाभ - हानि का दावा सबंधि तथ्य प्रदेश के समक्ष लाना आवश्यक है।आज नर्मदा घाटी में पीढियों से निवास कर रहे किसान, मजदूर, पशुपालक, मछुआरे और आदिवासी समुदाय के लोग विकास परियोजनाओ से हैरान परेशान हैं।पर्यावरणविद सुभाष पाण्डेय ने कहा कि समाचार पत्रों में यह हेडलाइन बनाया जाता है कि नर्मदा 75 प्रतिशत साफ हो गया है जबकि सरकारी दस्तावेज और अलग-  अलग जगहों से लिया गया नर्मदा जल की जांच रिपोर्ट से कुछ अलग ही जानकारी प्राप्त हो रहा है।मैनें रेत खनन, नर्मदा कछार से खत्म होते जंगल, शहरों एवं फैक्ट्री का नर्मदा गंदा पानी नर्मदा में मिलने जैसी सैकङो प्रकरण हरित न्याय प्राधिकरण में दायर किया हूं और पर्यावरणीय अनुकूल आदेश भी मिला है।परन्तु व्यवस्था इन सभी आदेशों पर अमल करने की जगह कुतर्क गढने लगता है।उन्होने कहा कि अगर यही स्थिति रहा तो अगले पचास साल बाद नर्मदा खत्म हो जाएगा।खेती विशेषज्ञ अरूण डीके ने कहा कि खेतों में रसायनिक खाद्य और कीटनाशक बंद कर जैविक खाद्य और कीटनाशक डालना ही जैविक खेती नहीं है।हवा,पानी, धूप के प्रकाश और वातावरण प्रदूषित  कर जैविक नहीं हो सकता है।उन्होने कहा कि कृषि विषय पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई किया हुआ है।जब 1940 में अल्बर्ट हावर्ड की लिखी पुस्तक  "खेती का वसीयतनामा " पढा तो समझ आया कि मैं गलत दिशा में जा रहा हूं।आज लगभग तीस साल से जैविक खेती करने के बाद आपको यह बात बताने की स्थिति में हूं।हमारा खेती,समाज और गांव को भी जैविक होना होगा तब ही वर्तमान जलवायू परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट से बच सकते हैं।बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्ह ने कहा कि नर्मदा में 165 एमएलडी गंदा पानी प्रतिदिन दिन मिल रहा है।जिसमें सबसे ज्यादा 136 एमएलडी प्रतिदिन का योगदान जबलपुर के 200 डेयरियां का 20 लाख लीटर मलमुत्र, 10 लाख लीटर रेलवे का गंदा पानी ,25 हजार घरों की गंदगी,175 से ज्यादा अस्पतालों का संक्रमित पानी,600 छोटे -बङे गैराज व वाशिंग सेंटर का है।इनसे 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है।जबकि 4.5 लाख लीटर प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है।इसी नर्मदा किनारे 22460 मेगावाट की थर्मल पावर प्लांट और 2800 मेगावाट की चुटका परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित है।जिसमें 6900 मेगावाट की बिजलीघर पहली ईकाई बनाकर निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया है।ज्ञात हो कि 1 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 3238 लीटर पानी और 0.70 टन कोयला प्रति घटा लगता है। बिजली उत्पादन से 40 प्रतिशत बने राख नर्मदा को राख से खाक में बदल देगा।वरिष्ठ पत्रकार राम स्वरूप मंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि नर्मदा की वर्तमान परिस्थिति को आमजन तक ले जान की आवश्यकता है।इसके लिए नर्मदा यात्रा के माध्यम से घाटी के लोगों से संवाद स्थापित करना होगा।मालवा की धरती गहन गंभीर पग- पग रोटी डग - डग नीर की कहावत उस समय की  सम्पन्नता को दर्शाता है परन्तु अब परिस्थिति ऐसी हो गई है कि पानी उधार लेना पङ रहा है। अगर हम अभी सचेत नहीं हुए तो हालात और गंभीर होने वाला है।कार्यक्रम में घाटी की श्यामा बाई मछुआरा,दयाराम यादव, गोखरू, नूरजी वसावा ,सियाराम, हरिओम ने भी बात रखा।कार्यक्रम का संचालन वाहिद मंसूरी ने किया।

राज कुमार सिन्हा

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ


No comments:

Post a Comment