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Saturday, May 6, 2023

एनसीपी टूटने के कयासों के मध्य शरद पवार के इस्तीफे के मायने...


रेवांचल टाईम्स - महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल का दौर चल रहा है। शिवसेना में बटवारें के बाद शरद पवार की एनसीपी में भी टूटन के कयास लगाए जा रहे है। एनसीपी के टूटने के कयासों के मूर्त रूप लेने से पूर्व देश के बड़े नेता एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा क्या महाराष्ट्र की राजनिति में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चल रही टूटन की खबरों पर विराम लगा पाएगा ? क्या शरद पवार ने अजित पवार के भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की रणनीति के पूर्व इस्तीफे का भावनात्मक मास्टर स्ट्रोक खेला है? विचारणीय यह भी है की कहीं ऐसा तो नही की अजित पवार के मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा व विधायको की सत्ता में बने रहने की लालसा ने महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज शरद पवार को इतना निराश तो नहीं दिया कि उम्र के इस पड़ाव में अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का विचार आया हो ? या ऐसा हो सकता है कि यह एक भावनात्मक मास्टर स्ट्रोक है जो एनसीपी में चल रहे टूटन के कयासों पर पूर्ण विराम लगा देगा। शरद पवार महाराष्ट्र ही नहीं देश की राजनीति के चाणक्य कहे जाते है। उनके द्वारा उठाए हर सियासी कदम का अर्थ होता है। इन कदमो का दूरगामी प्रभाव भी पड़ता है। शरद पवार भारत की राजनीति के चर्चित चेहरे है। 1967 में कांग्रेस की राजनीति शुरू करने वाले शरद पवार ने 29 वर्ष की उम्र में 1967 में बारामती से विधानसभा चुनाव जीता था। 38 वर्ष की उम्र में 1978 में महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री बनें। उनके नाम सबसे कम उम्र में सीएम बनने का रिकार्ड भी है। वें देश रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री रहे, बीसीसीआई के चेयरमेन और आईसीसी के अध्यक्ष भी रहे है। शरद पवार की छवि एक सफल राजनेता की रही है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि शरद पवार का इस्तीफा एनसीपी की बड़ी टूटन को रोकने का मास्टर स्ट्रोक है। इस मास्टर स्ट्रोक में वें कितने सफल हो पाते है किंतु इस्तीफे के बाद जो वातावरण निर्मित हुआ उसे देख यह कहा जा सकता है कि शरद पवार का राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सगठन पर गहरा प्रभाव है। उनके इसी प्रभाव का दृश्य 2019 में उस वक्त भी देखने को मिला था जब अजित पवार ने भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। अपनी आत्मकथा 'लोक माझे सांगाती' में पवार ने अपने भतीजे अजित पवार के भाजपा के साथ जाने की कहानी बयां करते हुए अजित का बचाव किया, पवार लिखते है 'मैंने सोचना शुरू किया कि अजित ने ऐसा फैसला क्यों लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि सरकार बनाने में कांग्रेस के साथ चर्चा सुखद नही थी। उनके व्यवहार के कारण हमें दिक्कत हो रही थी। एक मुलाकात में मैं भी आया खो बैठा था। मुझे देखकर पार्टी के दूसरे नेताओं को भी झटका लगा, कांग्रेस से आगे बात करने का कोई मतलब नहीं था। अजित के चेहरे से भी साफ जाहिर हो रहा था कि वह भी कांग्रेस के रवैये से खफा हैं। मैं बैठक से चला गया, लेकिन सहयोगियों से बैठक जारी रखने को कहा। कुछ समय बाद मैंने जयंत पाटिल को फोन किया और बैठक के बारे में पूछा, उन्होंने मुझे बताया अजित भी आपके जाने के बाद चले गए। भाजपा के साथ सरकार बनाने की खबर के बाद जब एनसीपी की बैठक बुलाई तो 50 विधायक बैठक में शामिल हुए। मुझे लग गया कि यह विद्रोह नहीं नाराजगी थी। शरद पवार ने अजित पवार के विद्रोह को भी नाराजगी का नाम देकर अजित को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। दरअसल शरद पवार की राजनीति भाजपा विरोधी रही है। उनका मानना है कि भाजपा ने महाराष्ट्र में अपना प्रभाव जमाने के लिए शिवसेना में बटवारा करवा दिया। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा '2019 के चुनाव में बीजेपी अपनी 30 साल की सहयोगी शिवसेना को खत्म करना चाह रही थी। बीजेपी को यकीन था की महाराष्ट्र में शिवसेना के अस्तित्व को कम किये बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। शिवसेना के अस्तित्व को खत्म करने के लिए बीजेपी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से भी बातचीत की थी, अनेकों नेता 2014 एवं 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहते थै, किन्तु मेरी हमेशा से राय रही है कि बीजेपी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। महाराष्ट्र की राजनीति में पवार ही वह शख्स है जिन्होंने कांग्रेस, राष्ट्रवादी ओर शिवसेना को मिलाकर महाविकास अघाड़ी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि शरद पवार का उक्त कदम एक तीर से अनेकों शिकार कर गया। पहला तो जैसा उन्होंने बताया कि वें पार्टी पार्टी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इसलिए पार्टी का उत्तराधिकारी चुनना चाहतें है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया  वें राजनीति से सन्यास नहीं ले रहे है। राजनीतिक पत्रकार गंगाधर ढोबले के अनुसार बगावत और संघर्ष पवार के राजनैतिक जीवन का अभिन्न अंग रहे है। वें महाराष्ट्र की राजनीति के सूत्र अपने हाथ में रखते है। मौके के साथ रोटी पलटना उन्हें आता है, तो क्या इस्तीफा रोटी के जलने के पूर्व पलटने की प्रक्रिया का हिस्सा है। शरद पवार को निकट से जानने वाले लोग इसे इसी तरह देख रहे है। अजित पवार के बारे में यह चर्चा जोरों पर थी कि शिंदे गुट के 16 विधायक सुप्रीम कोर्ट से अयोग्य घोषित हो गए तो उस स्थिति में मुख्यमंत्री का पद खाली हो सकता है। तब बीजेपी को अजित पवार की आवश्यकता होगी, अजित कभी भी बीजेपी के साथ जा सकते है। जिससे एनसीपी में फूट पड़ने की संभावना भी बन सकती थी। अजित को बीजेपी के साथ जाने से रोकने और पार्टी की फुट के अंदाजे का पूर्वानुमान शरद पवार को दिखाई दे रहा था। इस्तीफे के मास्टर स्ट्रोक से फिलहाल पार्टी में इन अंदेशो पर विराम लग गया है। एनसीपी संगठन का भावनात्मक समर्थन शरद पवार को मिलता दिख रहा है। राजनीतिक पत्रकार विजय त्रिवेदी के मुताबिक 83 वर्षीय पवार अब समझ चुके है कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अब नहीं बन सकते हैं। उनकी राजनीति भाजपा विरोधी रही है। विपक्षी एकता की कोशिशों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस्तीफा देकर वह विपक्षी एकता की कोशिशों में अधिक समय दे सकतें है। उनका इस्तीफा एनसीपी के उत्तराधिकारी चुनने की योजना का हिस्सा हो सकता है। शरद पवार की राजनीति दूर की कोढ़ी साबित होगी ऐसा कहना इन हालातों में मुमकिन दिखाई दे रहा है, उनके इस्तीफे के बाद निर्मित स्थिति पर नजर दौड़ाए तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है। अजित पवार की स्थिति पहले से कमजोर हुई है। संगठन के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने शरद पवार से पार्टी का अध्यक्ष बने रहने को कहा है। पार्टी का नया अध्यक्ष कौन होगा इसे लेकर एक समिति का गठन किया गया है। उन्होंने यह कहकर की परिवार का कोई सदस्य अध्यक्ष नहीं होगा अजित पवार के अध्यक्ष बनने की संभावना पर भी विराम लगा दिया है। एनसीपी का अगला अध्यक्ष कौन होगा यह सवाल अभी शेष है, किंतु शरद पवार ने समय पर रोटी पलटकर एनसीपी को होने वाले बड़े नुकसान से बचा लिया है, फिलहाल तो ऐसा कहा जा सकता है। राजनीति में वक्त पर निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए शरद पवार ने इस्तीफे का त्वरित निर्णय लेकर अपने राजनीतिक कौशल की छाप छोड़ी है। यह छाप उन्होंने तब भी छोड़ी थी, जब 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर पार्टी छोड़ी थी, तब पीए संगमा और तारीख अनवर को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था, तब से अब तक वें राष्ट्रवादी पार्टी के मुखिया बने हुए है। उनका इस्तीफा एक तीर से अनेको शिकार कर गया प्रतीत हो रहा है। यह जानने योग्य है कि 13 अप्रेल को पवार दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले उन्होंने विपक्षी एकता की जरूरत पर बल दिया था। टीएमसी ओर आम आदमी पार्टी तक पहुचने की आवश्यकता जताई थी। इस योजना के मध्य 2 मई को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना विपक्षी एकता के लिए समय निकालने, एनसीपी की टूटन को रोकने, आगामी महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दृष्टिकोण से कार्यकर्ताओं में सक्रियता लाने, अजित पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के पर विराम लगाने जैसे अनेकों विषयों का एक साथ निराकरण कर गया। शरद पवार अपनी आत्मकथा में यह स्वीकार कर चुके है। भाजपा महाराष्ट्र में अपने अस्तित्व को बढाने के लिए क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना चाहती है। वें जानते हैं कि शिवसेना में बटवारें के बाद बीजेपी एनसीपी में भी फुट डालने का प्रयास कर रही है। एनसीपी में बड़ी फुट का डलना शरद पवार की भाजपा विरोधी राजनीति को कमजोर कर सकती है। शरद पवार का इस्तीफा एक साथ अनेकों प्रश्नों को हल कर गया है। शायद एनसीपी टूटने के कयासों के मध्य शरद पवार के इस्तीफे के यही मायने निकाले जा सकतें है। उनका राजनीतिक अनुभव बीजेपी की आंतरिक राजनीति से वाकिफ है। इस्तीफा एनसीपी में बटवारें की संभावना पर कितना विराम लगा पाता हैं यह तो वक्त तय करेगा। किन्तु शरद पवार अपने भाजपा विरोधी रुख को अपनी आत्मकथा के माध्यम से स्पष्ट कर पाने में सफल रहें है।

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                               नरेंद्र तिवारी पत्रकार

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