भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा लोक निर्माण विभाग मंडला दलालों, ठेकेदारों और कमीशनखोरों को बचाने आरटीआई के नियमों की उड़ाई धज्जियां ,आरटीआई एक्टिविस्ट से प्रमाणित दस्तावेज देने ऐंठ लिए रुपए, अब कागजात देने से कर रहे मना - revanchal times new

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Thursday, May 11, 2023

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा लोक निर्माण विभाग मंडला दलालों, ठेकेदारों और कमीशनखोरों को बचाने आरटीआई के नियमों की उड़ाई धज्जियां ,आरटीआई एक्टिविस्ट से प्रमाणित दस्तावेज देने ऐंठ लिए रुपए, अब कागजात देने से कर रहे मना




रेवांचल टाईम्स - मंडला आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में विकास कार्यों की राशि का बंदरबांट करने की सोची समझी रणनीति के तहत खुलेआम भ्रष्टाचार करने का कारनामा चल रहा है। और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा यह है कि खुलेआम विभाग के प्रमुख कार्यपालन यंत्री अपने कार्यालयीन समय में दलालों, ठेकेदारों और कमीशनखोरों को आफिस में बैठाकर गप शप मारते रहते हैं, अगर कोई शिकायतकर्ता या पीड़ित भी मिलने जाता है तो उसे आफिस में घुसने नहीं दिया जाता बल्कि उनके चहेतों का जमावडा लगा रहता हैं। और जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी कोई बात भी नहीं की जाती है। हद तो तब हो गई जब आरटीआई एक्टिविस्ट को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 (1 ) की उपधारा में आवेदन लगा कर जानकारी ली जाती है तो विभाग से आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी प्रदाय करने के लिए पहले अनाप शनाप और भारी राशि की डिमांड की जाती है। अगर चाही गई जानकारी में आवेदक द्वारा राशि जमा कर दिया जाता है तो फिर शुरू होता है डर की उनके द्वारा किये गए कार्यो की पोल न खुल जाए फिर उसे मनाने का खेल शुरू होता है। नही मानने पर उसे हर प्रकार का प्रलोभन दिया जाता है कि आवेदक मानकर जानकारी न ले और उनके द्वारा किये कई निर्माण कार्यो की पोल न खुल जाए। अगर आवेदक नही मानता है तो उसे कल आइये एभी दस्तावेज तैयार नही, आप परसो आइये एभी मैडम नही। ऐसा कर के महीनों ऑफिस के चक्कर कटवाते हैं और लास्ट में आवेदक को दस्तावेज नही दिये जाते। कहा जाता है कि दस्तावेज नही है, आप शिकायत कर दे या फिर अपील कर दे। जब कार्यालय में दस्तावेज नही तो फिर आवेदक के द्वारा चाही गई जानकारी में किन दस्तावेजों की और गणना कर राशि जमा करने के लिए पत्र जारी किया गया था। पर जानकारी न देने से साफ नजर आ रहा है कि विभाग में सालों से अपना डेरा और अंगद के पैर की तरह से अनेकों सालों जमें उपयंत्री अनुविभागीय अधिकारी की पोल न खुल जाए। शायद इसलिए जानकारी देने से मना कर देते हैं। कारण कि उनके द्वारा किया गया निर्माण कार्यों और शासकीय धन में जो लीपापोती कर दी गई कहीं वह उजागर न हो जाये। 

       वहीं लोग निर्माण विभाग मंडला में सूचना अधिकार से पहले भी बड़े बड़े भ्रष्टाचार और भ्रष्टो की पोल खुल चुकी है। और भ्रष्टाचार से कमाए रुपये से नॉकरी जाते जाते बचा ली गई शायद इसलिए सूचना अधिकार में मांगी गई जानकारी के लिए विभाग के लोक सूचना अधिकारी ने बकायदा दस्तावेजों को देने के लिए विभाग में रुपए भी जमा करा लिए। अब जबकि विभाग के कार्यपालन यंत्री को इस बात का अहसास हुआ कि अगर प्रमाणित कागजात दे दिए गए तो विभाग के छुपे काले कारनामों और गबन सहित गुणवत्ताविहीन कार्यों की पोल खुल जाएगी। इसी भय से कार्यपालन यंत्री अब नियमों को ताक में रख प्रमाणित दस्तावेज देने से इंकार कर रहे हैं। जबकि दस्तावेज देने के लिए आरटीआई एक्टिविस्ट से बकायदा 1116 रुपए जमा करा लिए गए। फिर भी प्रमाणित दस्तावेज देने से इंकार कर रहे हैं।


पुल-पुलिया और सड़क निर्माण में भारी अनियमितता-


वही आरटीआई एक्टिविस्ट मुकेश श्रीवास ने बताया कि लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री ने जिन ठेकेदारों को पुल-पुलिया और अन्य निर्माण कार्य करने के लिए ठेका दिया गया, और जिन्हें उन निर्माण कार्य के देख-रेख का जिम्मा सौंपा था, उस निर्माण कार्यों में खुद उपयंत्री और अनुविभागीय ठेकेदार से साठगांठ कर लीपापोती कर शासकीय राशि में बंदरबांट कर दिया है और उन निर्माण कार्य में भारी अनियमितता बरती गई है। जहां एक ओर निर्माण कार्यों को गुणवत्ताहीन किया गया, जिसके चलते कम समय में ही इन पुल-पुलियों की हालत जर्जर हो गई। और जो जर्जर थी उनमें मरम्मत कार्य हुआ ही नहीं और राशि निकल गई। वहीं कई कार्य पूर्ण भी नहीं हुए और ठेकेदार को पूर्णता का सर्टिफिकेट विभाग ने जारी कर दिया। बगैर कार्य पूर्ण हुए संबंधित ठेकेदार को राशि का भुगतान कर दिया गया।


विभागीय कमीशनखोरी चरम पर- 


कार्यालय में सालों से जमे अधिकारी कर्मचारियों ने इस जिले को भ्रष्टाचार करने के लिए चारागाह बना लिया है। इन्हें अच्छे से पता है कि किस कार्य को कैसे निपटाना है। उन कार्यो में ये निपुण हो चुके है। आरटीआई एक्टिविस्ट मुकेश श्रीवास के अनुसार ऐसी आशंका जताई जा रही है कि लोक निर्माण विभाग मंडला के द्वारा जोे भी कार्य ठेकेदारों से कराया गया है। उसमें जमकर कमीशनखोरी की गई है, जिसके चलते गुणवत्ताहीन कार्यों को भी ओके कर दिया गया। बताया यह भी जा रहा है कि लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री की मौन सहमति और कमीशन खोरी के चलते कुछ तो बगैर निर्माण कार्य किये राशि निकाल ली गई। बहुत से कार्यो में भी ऐसी ही धांधली की गई है। इसी के चलते आरटीआई एक्टिविस्ट को प्रमाणित दस्तावेज देने में विभाग के कार्यपालन यंत्री न केवल आनाकानी कर रहे हैं, बल्कि अब तो साफ तौर पर दस्तावेज देने से मना कर रहे हैं।


निर्माण कार्यों का निरीक्षण कभी नहीं करते इंजीनियर-


वही सूत्रों और स्थानीय निवासियों ने नाम ना छापने की शर्त पर लोक निर्माण विभाग की कारगुजारियों का पदार्फाश करते हुए बताया कि ठेकेदार जब भी कोई निर्माण कार्य करते हैं तो उन कार्यों को देखने के लिए कभी भी कोई विभागीय अधिकारी या इंजीनियर स्पॉट पर नहीं जाते, जिसके चलते ठेकेदार और उनके गुर्गे मनमानी ढंग से गुणवत्ताविहीन कार्यों को अंजाम देते हैं। ऐसा करने के लिए लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारियों की जेबें गर्म की जाती है, जिसका सीधा असर विकास कार्यों पर होता है।

इनका कहना है-

मेरे द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन लगाकर निम्न बिंदुओं में लोक निर्माण विभाग से निर्माण कार्योें की जानकारी मांगी गई थी। विभाग ने प्रमाणित दस्तावेज देने के एवज में मुझसे 1116 रुपए जमा करा लिए। अब मुझे प्रमाणित दस्तावेज नहीं दिए जा रहे हैं। जबकि नियमों के तहत पैसे लेने के एक सप्ताह में का नियम है और कागजात देने की समयावधि भी बीत चुकी है। मंडला जिले में लोक निर्माण विभाग द्वारा कराए गए कार्यों में भारी अनियमितता की गई है। शायद इसी वजह से दस्तावेज उपलब्ध कराने में विभाग आनाकानी कर रहा है।

                                 मुकेश श्रीवास, 

                     आरटीआई एक्टिविस्ट, मंडला

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