रेवांचल टाईम्स - आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में जहाँ महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है पर आज भी उनकी जगह पर उनके पति का राज चल रहा है। वही मंडला जिला की पंचायतो में पति राज खत्म करने को लेकर सरकार ने आदेश पारित किया है आदेश के बाद भी अपनी पत्नी के नाम पर मिली सत्ता खुद ही समाल रहे है इस जिले आदेश का बदलाव कही नही दिखाई पड़ रहा हैं
जहां एक ओर देखा जा रहा है कि संविधान में, महिलाओं को आरक्षण देते हुए उन्हें अग्रसर किया जा रहा है तो दूसरी ओर केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकार द्वारा महिला शक्ति को सम्मान देने के लिये उन्हें आये लाया जा रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुये कुछ माह पहले प्रदेश के मुख्य मंत्री द्वारा विभिन्न पदों पर निर्वाचित हुये महिला जनप्रतिनिधियों के कुर्सी पर उनके पतियों या फिर परिवार के सदस्याओ को हस्ताक्षेप किये जाने पर सख्ती से रोक लगाने के लिए जिला कलेक्टरों को कार्यवाही करने के आदेश जारी किये गये थे। मगर इस आदेश को जारी हुई महिनों बीत जाने के बाद भी किसी तरह का बदलाव दिखाई नही पड़ रहा है और ग्राम पंचायतों से लेकर नगरीय निकायों में निर्वाचित हुई महिलाओं की कुर्सियों पर आज भी उनके पतिदेवों द्वारा जलवा दखाने में कोई कसर नही छोड़ी जा रही है। अक्सर देखा जाता है कि जिन क्षेत्रों में महिलाएं आगे बढ़ने का प्रसास करती है उन क्षेत्रों में उनके पतियों द्वारा उनकी कुर्सी पर कब्जा करते हुए उन्हें पीछे की ओर करने में कोई कसर नही छोड़ते है? जिसमें प्रमुख रूप से देखा जावे तो पंचायती राज व्यवस्था से लेकर नगर पालिकाओं पर सरपंच पतियों से लेकर पार्षद पतियों का ही बोलबाला देखने मिलता है। प्रमुख रूप से गौर किया जावे तो पंचायती राज में तो महिला सरपंच या जनपद सदस्य हो या फिर नगरीय निकायों में पार्षद वह मात्र नाम की ही होती है बोलबाला तो उनके पतियों का ही रहता है? इस बात की सच्चाई आज भी पंचायतों से लेकर नगरीय निकायों में आसानी से देखने मिल रही है। यहां तक की सरपंच पतियों द्वारा अपने आप को सरपंच, जनपद सदस्या या फिर जिला पंचयात सदस्य प्रतिनिधि बताने या फिर अपने वाहनों में लिखने से भी नही चूकते है? जबकि निर्वाचित प्रतिधिनियों के प्रतिनिधि होने का कालम विधायक तक हो होता है? विधायक के नीचे प्रतिनिधि का कालम होता ही नही है मगर इसके बाद भी सरपंच पति अपने आप को सरपंच प्रतिनिधि मानते हुए पंचायतों की कार्यवाही में सबसे आगे देखे जाते है? इस बात की सच्चाई इस समय क्षेत्र की ग्राम पंचायतों से लेकर नपा में आसानी से देखने मिल रही है। यहां पर
सच्चाई इस तरह देखने मिल रही है कि महिला जनप्रतिनिधियो के पतिदेव इन संस्थाओं के कार्यों में दखलन दाजी का प्रयास तो करते हुये देखे ही जाते है साथ ही कभी कभार इन जिम्मेदार मानी जानी वाली संस्थाओं की बैठकों में भी तशरीफ लाने से भी नही चूकते है? किंतु महिला. जनप्रतिनिधियों के पतियों की मनमानी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से कुछ माह पहले 'प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा इनकी दखनदाजी पर अंकुश लगाने के लिये आदेश जारी करते हुये जिला कलेक्टरों को कार्यवाही की बात कही गई थी। मगर पूर्व की भांति यह आदेश आज भी रद्दी की टोकरी में. दिखाई देते हुये जान पड़ रहा है जिन जगहों से महिला जनप्रतिनिधि निर्वाचित हुई है वहां पर उनके पतिदेव जलवा दिखा रहे है। क्योंकि इस तरह चुने हुए महिला जनप्रतिनिधियों के साथ उनके सम्बंधियो के बैठकों में शामिल होने पर रोक लगाने के आदेश जारी किये गये थें जिसमें प्रमुख रूप से गौर किया जावे तो स्वायत्तशायी संस्थाओं में महिला के सम्बंधियो के हस्तक्षेप को अनुचित बताते हुए शासन द्वारा लिए गये उक्त निर्णय की लोगों द्वारा सराहना की गई थी और इस निर्णय का पालन करने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों आलवा जिला स्तर के अधिकारियों को जिम्मा भी सौपा गया था कि इस निर्णय का कठोरता के साथ पालन होना चाहिए। मगर इस निर्णय को लम्बा समय बीत जाने के बाद भी स्थिति जहां की तहां नजर आ रही है? क्योंकि इस निर्णय की ओर न तो प्रशासनिक अधिकारी ध्यान दे रहे है और न ही इसका पालन हो रहा है? और आज भी अनेक जगहों पर महिला जनप्रतिनिधियों के पतियों द्वारा अपनी पत्नी की कुर्सियों पर जलबे दिखाते हुए आसानी से देखा जा रहा है। इस प्रकार की स्थिति के चलते जहां महिला आरक्षण नियम पर तो प्रश्न लग रही रहा है तो वही दूसरी ओर सरकार की मंशा अनुसार महिलाओं को मिले हुये अधिकारी व स्वतंत्रता का भी हनन भी होने से नही बच पा रहा है। इस सच्चाई के चलते जहां अनेक जगहों पर निर्वाचित हुई महिला जनप्रतिनिधि मात्र चौका चूल्हा तक की सीमित होकर रह गई है।
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