मण्डला 10 अक्टूबर 2022
मंडला जिला प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक एवं
पौराणिक दृष्टिकोण से विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जिले में अनेक प्रसिद्ध मंदिर
एवं मठ विद्यमान हैं। जिले से बहने वाली पुण्य सलिला मां नर्मदा मंडला जिले को
धार्मिक, पौराणिक के साथ-साथ आध्यात्मिक महत्व भी प्रदान करती है।
मंडला जिले के हर क्षेत्र में ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व के अनेक मंदिर हैं, जो स्वयं में अनेक किवदंतियां, कहानियां एवं प्रेरक
प्रसंग समेटे हुए हैं।
राजराजेश्वरी मंदिर
गॉड राजा निजाम शाह ने सन 1749 से 1776 के मध्य अपनी कुलदेवी राजराजेश्वरी की प्रतिमा रंगदार की
पहाड़ी से लाकर मंडला किले के इस मंदिर में प्रतिष्ठित की। यह मंदिर वर्गाकार भूखंड
में स्थित है जिसकी प्रत्येक भुजा 12 मीटर की है, गर्भगृह के प्रदक्षिणा पथ पर चारों और भव्य कलचुरीकालीन बेशकीमती सूर्य, विष्णु, नर्मदा एवं सहस्त्रबाहु की प्रतिमा जड़ी हुई है।
व्यासनारायण मंदिर
शिव सबके हैं। पुण्य सलिला नर्मदा के तट पर स्थित व्यास
नारायण मंदिर में प्राचीन शिवलिंग वेदव्यास द्वारा स्थापित किया गया। इसे उन्हीं
के उपासना स्थल के नाम पर वेदव्यास शिवलिंग कहा जाता है। यहां पर नर्मदा ने स्वयं
प्रकट होकर व्यास जी को आशीर्वाद प्रदान किया ऐसा माना जाता है।
सहस्त्रधारा का शिव मंदिर
मान्यता है कि महिष्मति राजा सहस्त्रार्जुन ने इसी स्थल पर
अपने सहस्त्र भुजाओं से मां नर्मदा के प्रवाह को रोकने का असफल प्रयास किया था
परंतु मां नर्मदा उसके अहंकार का मर्दन करती हुई सहस्त्रधाराओं में विभाजित होकर
प्रवाहित हो गई। नर्मदा के इसी प्रवाह के बीच सपाट चट्टान पर एक छोटा सा शिव मंदिर
स्थित है यह मंदिर भी अत्यंत प्राचीन है।
सहस्त्रधारा का पंचमठ मंदिर
सहस्त्रधारा कुंड के ऊपर दो मंजिला शिव मंदिर है जो पंचमठ
मंदिर के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग गर्भगृह में स्थापित है, इसके चारों ओर छोटे-छोटे चार कक्ष है जिसमें पांच देवी-देवताओं की प्रतिमा
स्थापित थी। मां नर्मदा के मध्य यह मंदिर ना केवल हमारी सांस्कृतिक वैभव को प्रकट
करते हैं अपितु पर्यटन एवं दर्शनीय स्थल के रूप में भी जिले के गौरव को बढ़ाते हैं।
चौगान की मढ़िया
मंडला जिला आदिवासी लोक संस्कृति का तीर्थ स्थल है। चौगान
की मढिया आदिवासी समाज का उपासना स्थल है। यह सभी वर्गों के लोगों की श्रद्धा और
आस्था का प्रसिद्ध केंद्र है। चौगान की मढिया में हमेशा धूनी जलती रहती है। यहां
प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रि में 1000 से अधिक जवारे कलश बोए
जाते हैं जिनका परंपरागत विधि से विसर्जन का दृश्य अद्भुत एवं दर्शनीय है।
ज्वाला-नर्मदा मंदिर
नर्मदा और बंजर नदी के संगम से नर्मदा का प्रवाह जब
उत्तरमुखी होते हुए सहस्त्रधारा की ओर प्रवाहित होता है इसी दिशा में सिद्ध मंदिर
ज्वाला नर्मदा मंदिर महाराजपुर में स्थित है। आस्था और विश्वास का प्रतीक इस मंदिर
में ज्वाला जी एवं नर्मदा जी की भव्य प्रतिमा है।
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