अब हर घर से गाय के लिये रोटी नहीं बल्िक पन्नी और पॉलीथिन निकलती है
विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन कहां तक?
मण्डला। विकास के नाम पर प्रकृति से छेडछाड हमारे जीवन के लिये एक बडा खतरा साबित हो रही है जब पहाड, जंगल ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो कैसें हम धरा और जल को सहेज सकेंगे? इसी सूत्र वाक्य को लेकर पिछले 18 माह से निराहार रहकर समर्थ गुरू भैया जी सरकार लगातार लोगों में चेतना जगाने का का प्रयास कर रहे हैं।
माँ नर्मदा के उद्गम स्थल से लेकर खम्बात खाडी तक उनकी अखण्ड परिक्रमा जारी है वे लगातार गांव और नगर के लोगों से मिलकर प्राचीन जल संरचनाओं को सहेजने एवं वृक्ष लगाने की बात कर रहे हैं। भैया जी सरकार का कहना है कि हमारी प्रवृत्ति ऐसी हो गई है जो हमें विनाश की ओर खींचती जा रही है। आज जल इतना संक्रमित हो गया है कि विभिन्न तरह की व्याधियां लोगों को न केवल परेशान कर रही हैं बल्िक मृत्यु का कारण भी बनती जा रही हैं।
पिछले कोरोना काल में जिस तरह लोग आॅक्सीजन के पीछे अपना जीवन तलाशते रहे वह सभी ने देखा है। एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिये अपनी जीवन भर की कमाई लोग देने को तैयार थे। ऐसी विभीषिका का सामना करने के बाद भी लोग समझ नहीं पा रहे कि वृक्षों का हमारे लिये कितना महत्व है।
सिद्धघाट में लोगों से किया संवाद
अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान शनिवार 23 अप्रैल को भैया जी सरकार का सिद्धघ्ााट रेवा दरबार आना हुआ जहां वे शाम की महाआरती में शामिल हुये और आरती उपरांत उन्होंने उपस्थित लोगों के साथ संवाद किया। भैया जी सरकार ने सभी उपस्थित लोगों से यह निवेदन किया कि नर्मदा तटों पर किसी भी स्थिति में पन्नी एवं पॉलीथिन का उपयोग न करें। अपनी मनोकामना की पूर्ति और कष्ट एवं दुखों को दूर करने के लिये प्रतिवर्ष नर्मदा भक्त लाखों नारियल माँ नर्मदा को भेंट करते हैं यदि इतनी ही कीमत के पौधें नर्मदा तटों पर लगाये जाने लगें तो माँ नर्मदा का तट अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हो सकता है और इससे जो मानव जीवन या मानव संस्कृति धीरे-धीरे खतरे में पडती जा रही है उसे भी उबारा जा सकता है।
भैया जी सरकार ने कहा कि मैं किसी भी तरह के विकास एवं निर्माण के विरूद्ध नहीं हूँ लेकिन प्राकृतिक संरचनायें जिनसे जीवन जुडा हुआ है उसे नष्टकर हम कौन सा जीवन सहेजने जा रहे हैं।
भैया जी सरकार ने द्वारकापुरी का उदाहरण देते हुय्ो लोगों को समझाया कि यह पूरी भगवान की बसाई गई नगरी थी जो कि इतनी विराट और सुरक्षित थी कि कोई भी इसके आस्ितत्व को लेकर प्रश्न खडा नहीं कर सकता था लेकिन भगवान की बनाई हुई द्वारकापुरी भी वहां के वासियों की प्रवृत्ति के चलते आज समुद्र में विलीन हो चुकी है कमोवेश हम भी कुछ ऐसे युग में जी रहे हैं कि हमारी जीवन शैली जो है उससे हमारा जीवन संकट में नजर आने लगा है। आज भी हम यदि प्रकृति के साथ इसी तरह छेडछाड करते रहे तो निश्िचत रूप से हमारा विनाश भी निश्िचत होगा।
नर्मदा अंचल में जिस तरह के वृक्ष हैं, पहाड हैं, पत्थर हैं वे अनमोल हैं उनसे न केवल जीवन मिल रहा है बल्िक विभिन्न रह की व्याधियों की औषधि भी इन्हीं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है और हम ऐसी अनमोल धरोहर को थोडे से लाभ के लिये नष्ट कर रहे हैं।
पूरे नर्मदा अंचल में जिस तरह से वनों का एवं खनिज का दोहन किया जा रहा है वह आने वाले समय में विनाशकारी साबित होने वाला है हम अब भी नहीं सचेत हुये तो निश्िचत रूप से आने वाली पीढी यह सब नहीं देख पायेगी। पन्नी, पॉलीथिन का उपयोग छोडकर हम न केवल धरा को सुरक्षित कर पायेंगे बल्िक धेनू का भी जीवन बचा सकेंगे।
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