रेवांचल टाईम्स : पौष मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है. विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. विनायक चतुर्थी के दिन व्रत रखा जाता है और गणेश जी की आराधना की जाती है. पूजा के समय विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vrat Katha) सुनी जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आप जो भी व्रत रखते हैं, उसकी व्रत कथा सुननी चाहिए. आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी की कथा
विनायक चतुर्थी कथा (Vinayak Chaturthi Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है. राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था. वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता था. किसी कारणवश उसके बर्तन सही से आग में पकते नहीं थे और वे कच्चे रह जाते थे. अब मिट्टी के कच्चे बर्तनों के कारण उसकी आमदनी कम होने लगी क्योंकि उसके खरीदार कम मिलते थे.
इस समस्या के समाधान के लिए वह एक पुजारी के पास गया. पुजारी ने कहा कि इसके लिए तुमको बर्तनों के साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना चाहिए. पुजारी की सलाह पर उसने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा में रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया.
उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी. बालक के न मिलने से उसकी मां परेशान हो गई. उसने गणेश जी से उसकी कुशलता के लिए प्रार्थना की. उधर कुम्हार अगले दिन सुबह अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि सभी अच्छे से पक गए हैं और वह बालक भी जीवित था. उसे कुछ नहीं हुआ था. यह देखकर वह कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में गया. उसने सारी बात बताई. फिर राजा ने उस बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया. तब उस महिला ने गणेश चतुर्थी व्रत के महात्म का वर्णन किया.
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