रेवांचल टाईम्स - मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए हो रहे ऐतहासिक 28 सीटों के उप चुनाव की गहमा गहमी, आरोप प्रत्यारोप और बिकाऊ और टिकाऊ जैसे आरोपों के बीच जारी घमासान में विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की पंद्रह महीने की सरकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पंद्रह साल की सरकार पर भारी पड़ती नज़र आरही है। मध्य प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद से जो विशेष सियासी घटनाक्रम हुए उसमें 2020 की दल-बदल घटना को काले अक्षरों में लिखा जायेगा जिसके पीछे कांग्रेस पार्टी का आरोप है की उसके 25 विधायकों को मोटी रक़म देकर पाला बदलवाया गया और वह भाजपा में शामिल हो गए। 15 वर्ष की तपस्या के बाद कांग्रेस पार्टी को सरकार बनाने का अवसर तो प्राप्त हुआ, लेकिन पार्टी पूर्ण बहुमत के आंकड़े से दो कदम दूर रह गई। हालाँकि इसके बावजूद भी कमलनाथ की दूरदर्शिता और उनकी बेदाग़ छवि के कारण सभी चार निर्दलीय और बसपा सपा के तीन विधायकों ने बिना शर्त समर्थन देकर सरकार को पांच कदम आगे बढ़ा दिया। इस प्रकार कमलनाथ की अगुआई में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में तो आई लेकिन इसके बावजूद बहुमत न होने की तलवार लटकती रही। कांग्रेस को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत न होने का मलाल पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ को सताता रहा। कमलनाथ ने इसकी परवाह किये बिना ने अपने शपथ ग्रहण के एक घंटे से भी कम समय में चुनाव पूर्व दिए गए वचन के अनुरूप ऐतिहासिक फैसला लेते हुए प्रदेश के लाखों किसानो की क़र्ज़ माफ़ी के दस्तावेज़ पर दस्तखत करके इतिहास रच दिया। आज 28 सीटों के उप-चुनाव में क़र्ज़ माफ़ी एक अहम् मुद्दा बनकर उभरा है। जहाँ एक ओर जनता पर अकारण लादे गए उप-चुनाव में मुख्यमंत्री चौहान एवं बीजेपी के सभी वरिष्ठ एंड कनिष्ठ नेतागण कमलनाथ पर किसानो के क़र्ज़ माफ़ी को ढकोसला बता रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने भाजपा पर धावा बोलते हुए उस पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाया है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा के मंत्री ने विधान सभा में 27 लाख किसानो के क़र्ज़ माफ़ी को स्वीकार किया है। और अब भाजपा क़र्ज़ माफ़ी पर जनता को गुमराह कर रही है। हाल ही में कई विधान सभा क्षेत्रों का दौरा कर लौटे एक विशेषज्ञ ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस छोड़ भाजपा की टिकट पर चुनाव में उतरे लगभग सभी प्रत्याशियों को जनता के साथ साथ भाजपा की टिकट न मिलने से नाराज़ और इसी पार्टी के दूसरे भितरघाती लोगों का दोहरा दंश झेलना पड़ रहा है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस दूध की धूलि है, उसने भी एक्का दुक्का टिकट भाजपा से आये लोगों को भी दिया है, लेकिन उनके खिलाफ इतना गुस्सा नहीं है जितना भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ है। उसके कई कारण हैं। भाजपा प्रत्याशियों पर आरोप है कि इन्हों ने जनता के मतों का सौदा किया है। विशेषज्ञ का मानना है जनता के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का जलवा आज भी कायम है, और वह अपने चिरपरिचित अंदाज़ में लोगों का दिल जीतने में माहिर हैं। उनके द्वारा जारी की गई योजनाओं का ज़िक्र करते हुए वह आरोप लगाते हैं की कांग्रेस ने भाजपा द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं को बंद कर दिया है। आचार्य प्रमोद कृष्णम के द्वारा शिवराज की तुलना कंस, शकुनि और मारीच से किए जाने पर बदज़ुबानी एवं टीका टिप्पणी करने वालों को आड़े हाथ लेते हुए उन्हों ने कहा कि मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्यों की वह जनता के सेवक हैं। कांग्रेस का आरोप है की कमलनाथ के आइटम वाले बयान पर भाजपा आक्रामक है, लेकिन उनके मंत्री बिसाहू लाल द्वारा कोंग्रेस प्रत्यासी की पत्नी को रखैल जैसे घिनौने शब्द से सम्बोधित किए जाने पर मौन हैं। साथ ही कांग्रेस का सवाल है कि इमरती देवी द्वारा कमलनाथ के परिवार पर व्यक्तिगत टिप्पणी की गई जिस पर भाजपा चुप क्यों है? सम्पूर्ण घटनाक्रम पर विशेषज्ञ भी मानते हैं कि मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देश के इतिहास में यह पहला अवसर है जबकि दल बदल के कारण इतनी बड़ी तादाद में उप-चुनाव हो रहे हैं। साथ ही यह देश का पहला उदाहरण है कि इतनी बड़ी संख्या में गैर विधायकों को मंत्री बनाया गया है जिसके चर्चे न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी हुए हैं।
Monday, November 2, 2020

15 साल पर भारी पड़ते दिख रहे ये 15 महीने ?
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