दैनिक रेवांचल टाइम्स - मवई नातन धर्म शास्त्रों में वट सावित्री व्रत की कथा का जिक्र होता है । यह व्रत जेष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है |यह व्रत सुहागन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है | अत्यंत प्राचीन कथाओं में से एक वट सावित्री व्रत की कथा सुख , सौभाग्य ' ऐश्वर्य और शांति को देने वाला कहा गया है ।
पुराणों में वर्णित राज ऋषि अश्वपति की सुपुत्री सावित्री हुई , जिसने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना ।अल्पकाल में ही सत्यवान के जीवन का अंत समय आ गया । कहा जाता है कि यमराज ने जब सत्यवान के जीवन को समाप्त कर उसके प्राण लेकर जाने लगे तभी महान पतिव्रत धर्मनिष्ठ सावित्री जान गई और वह अपने पति के प्राण को वापस पाने यमराज के पीछे पीछे खुद भी जाने लगी । बहुत मना करने पर भी वह ना मानी तो यमराज ने उसे वचन दिया कि ' सत्यवान के प्राण को छोड़कर कुछ और मांग लो मैं तत्क्षण तुम्हें देने को तैयार हूं । तभी सावित्री ने अपने सौभाग्य की रक्षार्थ पुत्र प्राप्ति का वरदान मांग लिया । अकस्मात ही यमराज ने तथास्तु कह दिया |
इस वृतांत के पश्चात यमराज पुनः यमलोक प्रस्थान करने लगे तभी सावित्री ने उनके पीछे - पीछे जाना जारी रखा ।कुछ समय पश्चात यमराज पीछे मुड़कर देखे तो वही सावित्री पीछे-पीछे आ रही थी | यमराज ने कहा कि देवी अब तो मैं तुम्हें वरदान भी दे दिया अब तुम पृथ्वी लोक में जाओ और पुत्र - पौत्र आदि का सुख भोगो | तब सावित्री ने कहा - हे महा प्रभु आपने पुत्रवती होने का वरदान तो दिया 'लेकिन बिना पति के में पुत्रवती कैसे हो सकती हूँ । हैरान होकर यमराज ने सत्यवान को सावित्री के साथ विदा कर दिया । तभी से यह पौराणिक कथा आज तक प्रचलित है तब से सभी सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सुख सौभाग्य ईश्वर य एवं शांति की कामना से इस व्रत को रखकर वट वृक्ष का पूजन करती हैं |आज के दिन गांव से लेकर शहरों तक भी वट सावित्री व्रत और पूजन प्रचलित है |
उक्त वर्णित कथा सनातन धर्म मान्यताओं पर आधारित है ।किसी भी प्रकार से मत -मतांतर एवं साक्ष्य के लिए रेवांचल परिवार इसकी पुष्टि नहीं करता |
No comments:
Post a Comment