बैसाखी का पर्व सिख व पंजाबी समुदाय के लिए बहुत बड़ा पर्व है और इसे बड़ी धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है. ज्योतिष के लिहाज से भी यह दिन बहुत खास है क्योंकि इस दिन सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं और इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में मेष संक्रांति का विशेष महत्व है और इस दिन दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. (Mesh Sankranti 2023) इसके अलावा मेष संक्रांति के दिन कुछ जगहों पर सत्तू खाने की भी परंपरा है. आइए जानते हैं आखिर बैसाखी और मेष संक्रांति के दिन सत्तू क्यों खाया जाता है?
बैसाखी के दिन क्यों खाते हैं सत्तू?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब बैसाखी और मेष संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 14 अप्रैल को पड़ रहा है. सिख समुदाय के लोग बैसाखी को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. वहीं इस दिन मेष संक्रांति भी होती है और स्नान-दान का विशेष महत्व माना गया है. मेष राशि को अग्नि तत्व की राशि कहा जाता है सूर्य देव को भी अग्नि तत्व का ग्रह कहा गया है. ऐसे में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो तेजी पढ़ने लगती है. इस अग्नि को शीतलता प्रदान करने के लिए सत्तू का दान व सेवन किया जाता है. क्योंकि सत्तू ठंडा होता है और इसका सेवन करने से शीतलता प्राप्त होती है.
इसके अलावा बैसाख के महीने को ज्येष्ठ का महीना भी कहते हैं जो कि बहुत गर्म माना जाता है. इस गर्मी से बचने के लिए भी सत्तू का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार पुराने समय में साधनों की कमी होती थी और भयंकर गर्मी से निजात पाने के लिए ठंडी चीजों का सेवन किया जाता था. यह परंपरा आज भी जारी है और इसलिए बैसाखी के दिन सत्तू का दान भी किया जाता है.
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